रोज थाली लेकर मंदिर जाती माँ पत्थर पर भावनाओं के पुष्प चढ़ाती माँ कौन कहता है पत्थर निर्जीव है निर्जीव को भी सजीव बनाती माँ घर की मेढ़ी पर बैठी माँ तकती है राह बेटों की सांझ जैसे-जैसे ढ़लती जाती है
माँ की अश्रु धारा बहती जाती है उसका वो बार-बार दीए ...
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